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स्वश्वा॒ सिन्धु॑: सु॒रथा॑ सु॒वासा॑ हिर॒ण्ययी॒ सुकृ॑ता वा॒जिनी॑वती । ऊर्णा॑वती युव॒तिः सी॒लमा॑वत्यु॒ताधि॑ वस्ते सु॒भगा॑ मधु॒वृध॑म् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

svaśvā sindhuḥ surathā suvāsā hiraṇyayī sukṛtā vājinīvatī | ūrṇāvatī yuvatiḥ sīlamāvaty utādhi vaste subhagā madhuvṛdham ||

पद पाठ

सु॒ऽअश्वा॑ । सिन्धुः॑ । सु॒ऽरथा॑ । सु॒ऽवासाः॑ । हि॒र॒ण्ययी॑ । सुऽकृ॑ता । वा॒जिनी॑ऽवती । ऊर्णा॑ऽवती । यु॒व॒तिः । सी॒लमा॑ऽवती । उ॒त । अधि॑ । व॒स्ते॒ । सु॒ऽभगा॑ । म॒धु॒ऽवृध॑म् ॥ १०.७५.८

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:75» मन्त्र:8 | अष्टक:8» अध्याय:3» वर्ग:7» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:6» मन्त्र:8


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सिन्धुः) वह समुद्र-सदृश महती नदी है (स्वश्वा) शोभन अश्ववाली जैसी (सुरथा) शोभन रथवाली जैसी (सुवासा) शोभन वस्त्रवाली जैसी (हिरण्ययी) सुनहरी जैसी (सुकृता) शोभन कर्मवाली (वाजिनीवती) प्रशस्त क्रियावाली (उर्णावती) ऊर्ण प्रदेशवाली (युवती) मिश्रण धर्मवाली (सीलमावती) कृषिसाधनवाली (सुभगा) सुभाग्यकरी (उत) और (मधुवृधम्-अधिवस्ते) जल से वर्धनीय स्थान को आच्छादित करती है ॥८॥
भावार्थभाषाः - अन्तरिक्षस्थ  जलसमूह एक बड़ी भारी नदी है, सारी पृथिवी की नदियों का आधार है। वह पृथिवी पर बरस कर आती है बड़े वेग से घोड़ों की गति की भाँति, बड़े सुन्दरयान की भाँति आती है और पृथिवी पर वस्त्रसाधन कपास अन्य सुनहरी वस्तुओं बल क्रियाओं, खेती के उपयोगी धान्य को देती हुई और बढ़ाती हुई आती है ॥८॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सिन्धुः) सा समुद्ररूपा समुद्रसदृशी महती नदी “सिन्धुः-विस्तीर्णा नदी” [ऋ० १।९२।१२ दयानन्दः] (स्वश्वा) शोभनाश्ववतीव (सुरथा) शोभनरथवतीव (सुवासा) शोभनवस्त्रवतीव (हिरण्ययी) सुवर्णवतीव (सुकृता) शोभनं कृत्यं यस्याः तथाभूता (वाजिनीवती) प्रशस्तक्रियावती (ऊर्णावती) ऊर्णाप्रदेशवती (युवतिः) मिश्रणधर्मवती (सीलमावती) “सीरं कृषिसाधकं हलादिकम्” [यजु० १८।७ दयानन्दः] रेफस्य लकारश्छान्दसः सीलं मिमीते सीलमा रज्जुभूता या ह्योषधिस्तद्वती (सुभगा) सुभाग्यकरी (उत) अपि च (मधुवृधम्-अधिवस्ते) जलेन वर्धनीयं स्थानमध्याच्छादयति ॥८॥